मोदी के 20 लाख करोड़ के पैकेज से मर रहे ग़रीब मज़दूरों का कितना भला होगा?- नज़रिया
आप चाहें तो गिलास को आधा भरा देख सकते हैं और चाहें तो आधा ख़ाली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मंगलवार रात का राष्ट्र के नाम संदेश भी ऐसा ही है.
आप चाहें तो ये देख सकते हैं कि उन्होंने बीस लाख करोड़ रुपए का पैकेज लाने का एलान कर दिया. हताश, निराश और एक अभूतपूर्व संकट से जूझते देश को एक नया नारा दिया कि इस संकट को कैसे मौक़े में बदला जा सकता है.
कैसे यहाँ से एक आत्मनिर्भर भारत की शुरुआत हो सकती है, जिसकी पहचान भी कुछ और होगी और जो बदली दुनिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
आप दम भर हवा से अपना सीना फुलाते हुए बोल सकते हैं कि भारत के इतिहास का सबसे बड़ा राहत पैकेज लाकर सरकार ने दिखा दिया है कि वो कितना कुछ कर सकती है.
और आप चाहें तो ये भी देख सकते हैं कि अपने पिछले भाषणों की तरह प्रधानमंत्री ने कुछ नए नारे लगाए, कुछ नए शब्द विन्यास दिखाए, अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया और उन्होंने उन सवालों के जवाब दरअसल नहीं दिए जिनके जवाब आप सुनना चाहते थे.मसलन, घर जाने के लिए जान देने पर उतारू ग़रीबों और मज़दूरों का क्या होगा, लॉकडाउन अब ख़त्म नहीं हुआ तो कब होगा और कितना लंबा चलता रहेगा. और मोदी जी ने एलान तो कर दिया है लेकिन ख़र्च के लिए पैसा आएगा कहां से?
यही नहीं आप हिसाब का खाता खोलकर गिना भी सकते हैं कि सरकार पहले ही पौने दो लाख करोड़ रुपए अपने खाते से ख़र्च का एलान कर चुकी है. और रिज़र्व बैंक के ज़रिए भी उसने आठ लाख करोड़ रुपए बाज़ार में डालने का इंतज़ाम किया है. दोनों जोड़ लें तो लगभग दस लाख करोड़ रुपए का एलान पहले किया जा चुका है और पैकेज का आधा हिस्सा यानी सिर्फ़ दस लाख करोड़ रुपए और ख़र्च होना है.
लेकिन बात इतनी मामूली भी नहीं है. दस लाख करोड़ यानी दस ट्रिलियन आसान ज़ुबान में समझें तो दस के आगे बारह शून्य लगा लीजिए. और पहले के दस भी अभी पूरे ख़र्च तो हुए नहीं हैं. वो भी सिस्टम में आएँगे, बैंकों से निकलेंगे, बिज़नेस में जाएँगे, ख़र्च होंगे, इस जेब से उस जेब में जाएँगे तभी तो माना जाएगा न कि पैसा काम पर लगा है.
हरेक के हिस्से 15 हज़ार रुपए?
टोटल रक़म जोड़ लें तो बीस लाख करोड़ का मतलब है महीने में बीस लाख कमाने वाले एक करोड़ लोगों की तनख़्वाह. दो लाख कमाने वाले दस करोड़ लोगों की तनख़्वाह. बीस हज़ार कमाने वाले सौ करोड़ लोगों की तनख़्वाह. यानी एक सौ पैंतीस करोड़ के देश में हिस्सा बाँटें तो क़रीब क़रीब पंद्रह हज़ार रुपए हरेक के पल्ले पड़ जाएँगे.
मोदी: आत्मनिर्भर भारत के लिए 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज
पीएम मोदी ग़रीब, मज़दूर, किसान और श्रमिकों पर क्या बोले
हालाँकि वॉट्सऐप के गणितज्ञ रात नौ बजे ही हिसाब लगाकर बता चुके थे कि मोदी जी ने हरेक को पंद्रह लाख देने का जो वादा किया था वो पूरा हो गया. लेकिन उन्हें भी दोष नहीं दिया जा सकता.
मगर तत्व की बात यह है कि सरकार ने अपनी तरफ़ से यह संदेश दे दिया है कि कोरोना से मुक़ाबले के लिए लॉकडाउन करना उसकी मजबूरी थी तो रही होगी. अब उसे दिखाना है कि यह देश एक बड़े संकट में से कैसे अपने लिए तरक़्क़ी की नई राह बना सकता है.
इतिहास, अर्थशास्त्र और व्यवहार बुद्धि तीनों गवाह हैं कि बहुत बड़ी मुसीबत अक्सर बहुत बड़े मौक़े में बदली जा सकती है. मोदी जी ने अपने भाषण में Y2K समस्या का उदाहरण भी दिया. 1991 का उदाहरण हमारे सामने है. दोनों ही वक़्त ये लगता था कि अब सब कुछ ख़त्म हो गया.
लेकिन दोनों ही बार अंधकार में एक नई राह खुली और लंबे समय तक उसका फ़ायदा मिलता रहा. आईटी की दुनिया में भारत का दबदबा हो या आर्थिक सुधारों के बाद आठ परसेंट सालाना विकास दर तक पहुँचने की कहानी.
टुकड़ों-टुकड़ों में देखें तो अनेक छोटे-छोटे सूत्र बिखरे पड़े हैं. 12 मई के भाषण में ही आत्मनिर्भर भारत के पाँच खंभों (पिलर को हिंदी में यही कहते हैं) का ज़िक्र हुआ, इकोनॉमी, इन्फ़्रास्ट्रक्चर, सिस्टम, डेमोग्राफी और डिमांड.
आप और हम इन सब पर सवाल पूछ सकते हैं कि क्वांटम जंप, आधुनिक भारत की पहचान, रिफॉर्म्स, और सप्लाई चेन वग़ैरह का पूरा गणित क्या है. मगर बहुत से लोग हैं जो न सिर्फ़ सब कुछ समझ गए बल्कि बिल्कुल वैसे समझ गए जैसे परियों की कथा सुनते वक़्त आप अपने दिमाग़ में परीलोक की एक तस्वीर बना लेते हैं.
यही वजह है कि भाषण ख़त्म होते ही तय हो गया कि अगली सुबह शेयर बाज़ार में एक नया सवेरा आने वाली है. सिंगापुर के बाज़ार में भारत का जो इंडेक्स ख़रीदा बेचा जाता है वो क़रीब साढ़े तीन परसेंट का उछाल दिखा रहा था और इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि बुधवार की सुबह भारत के शेयर बाज़ार धमाकेदार तेज़ी के साथ खुलेंगे.
शेयर बाज़ार में दिखेगी तेज़ी
इसे गैप अप ओपनिंग कहा जाता है. यानी मंगलवार को बाज़ार जहां बंद हुआ, बुधवार का पहला सौदा ही उससे काफ़ी ऊपर के भाव पर होगा. वजह भी साफ़ है. ज़्यादातर जानकारों का कहना है कि बाज़ार को उम्मीद थी कि सरकार ज़्यादा से ज़्यादा जीडीपी का पाँच से सात परसेंट ख़र्च करने का एलान करेगी.
जबकि यहाँ आ गया है दस परसेंट का पैकेज. यानी उम्मीद से कहीं ज़्यादा. शेयर बाज़ार के खिलाड़ी वैसे भी चींटी का पहाड़ बनाने के एक्सपर्ट होते हैं. अमीर को, ग़रीब को, मिडल क्लास को, उद्योग को, व्यापार को क्या मिलेगा इसका हिसाब लगता रहेगा. किसे कितना मिलेगा इससे किसे क्या फ़र्क़ पड़ेगा ये भी बाद में देख लिया जाएगा.
अभी तो सेंटिमेंट सुधर गया है, तो बाज़ार में पैसा बना लिया जाए. सेंटिमेंट एक ऐसी चीज़ है जो किसी को दिखती तो कभी नहीं है लेकिन शेयर बाज़ार को लगातार उठाती गिराती रहती है. सो बुधवार की सुबह सेंटिमेंट अच्छा रहनेवाला है इतना साफ़ है.
लेकिन ये सेंटिमेंट क्या शाम तक ऐसा ही रहेगा? यह भी कोई बता नहीं सकता, फिर लंबे समय के लिए क्या होने वाला है इस सवाल का जवाब तो जाने ही दीजिए.
हाँ, अब भी कुछ विशेषज्ञ हैं जो उत्साह की इस गंगा में डुबकी लगाने से पहले जान लेना चाहते हैं कि पानी कितना गहरा है. वो कह रहे हैं कि अभी यह देखना ज़रूरी है कि सरकार ने पहले के दस लाख करोड़ के ऊपर जो और दस लाख करोड़ रुपए ख़र्च करने का एलान किया है वो कहां-कहां ख़र्च होने जा रहा है. यानी कितनी रक़म किसे मिलेगी और वो आएगी कहां से.
सबसे बड़ा सवाल ये है कि सरकार क्या नए रास्ते से पैसा जुटाएगी, नए नोट छापेगी, क़र्ज़ उठाएगी, या फिर वो पहले से तय किसी ख़र्च को रोककर वो रक़म इस पैकेज पर ख़र्च करने जा रही है.
इन सवालों के जवाब यानी पैकेज का पूरा ब्यौरा सामने आने के बाद ही तय हो पाएगा कि देश को, इकोनॉमी को, उद्योग और व्यापार को, ग़रीबों और किसानों को और नौकरीपेशा या अपने कारोबार में लगे मध्य वर्ग को इतिहास के इस सबसे बड़े पैकेज से क्या मिलने जा रहा है.
वरना कहीं ये ऐसा सम्मान साबित न हो जाए जिसका हल्ला तो बहुत होता है लेकिन जिसमें एक शॉल और एक सर्टिफ़िकेट के अलावा हाथ कुछ नहीं आता.
(लेखक सीएनबीसी आवाज़ के पूर्व संपादक हैं